Monday, 11 December 2017

वचनवंश के 11रवे महन्थ आचार्य गुरु राज नारायण साहेब जी को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित संत महासम्मेलन।


सत् कबीर वचनवंशीय मूल आचार्य गद्दी रोसरा के द्वारा आचार्य गुरु राज नारायण साहेब जी के सत्यलोकगमन होने के उपरांत
उनको श्रद्धांजलि देने के लिए सत् कबीर वचन वंश आचार्य गद्दी तथा कबीर पंथ के आचार्य गुरु संत महन्थ हंस जनों का महासम्मेलन आयोजित किया गया।
  कबीर पंथ का विशाल संत महासम्मेलन का कार्यक्रम यह सत् कबीर वचन वंश आचार्य गद्दी के द्वारा संचालित  संत कबीर महा विद्यालय रोसड़ा में किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संत कबीर रामजीवन सामाजिक शोध संस्थान के संस्थापक तथा वचन वंश के वरिष्ठ महंत आचार्य डा.विद्यानंद शास्त्री जी ने
आचार्य राज नारायण साहिब जी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि आचार्य गुरु राज नारायण साहेब कबीर पंथ के एक क्रांतिकारी नायक थे।

आचार्य विद्यानंद शास्त्री साहेब ने कहा कि सदगुरु कबीर के क्रांतिकारी विचारों को समाज के जन जन तक पहुंचाने के लिए।
गुरु राज नारायण साहेब ने जो त्याग और समर्पण के साथ काम किया वह कबीर पंथ के इतिहास में सदा स्मरणीय रहेगा ।


महासम्मेलन को संबोधित करते हुए आचार्य विद्यानंद शास्त्री साहेब ने कहा कि सदगुरु कबीर के विचार आज भी प्रासंगिक है परंतु उनका सपना अधूरा है।
क्योकी हमारा समाज आज भी सामाजिक विषमता, सांप्रदायिकता, अंधविश्वास ,जात पात  ,छुआछूत और धार्मिक  पाखंडो से भरा हुआ है।
यदि हमें इन सामाजिक कुरीतियों को दूर करते हुए  एक समतामूलक और संप्रदायिकताविहीन समाज की स्थापना करना है ।
तो हमें सतगुरु कबीर साहेब के क्रांतिकारी विचारों को स्वीकार करना होगा और उनके सपने को साकार करना होगा ।

महासम्मेलन मे सामिल होते हूए देश विदेश से आए हुए संत महंत हंश जनो ने आदरणीय परम पूज्य आचार्य गुरु राज नारायण साहेब जी को श्रद्धांजलि दी ।
इस महा सम्मेलन के मुख्य अतिथि परम पूज्य रोसरा बगाईचा मठ के आचार्य गुरु दीप नारायण साहिब थे तथा अध्यक्षता वचन वंश के वरिष्ठ आचार्य डॉक्टर विद्यानंद शास्त्री साहेब ने कि।
आचार्य गुरु राज नारायण साहेब जी के महापरिनिर्वाण दिवस के उपरांत उनको श्रद्धांजलि  अर्पित करने के लिए आयोजीत।

कबीर पंथ के इस महासम्मेलन में  लाखों की संख्या में देश-विदेश से पहुंचे कबीर पंथ के संत महंत और हंश जनों ने आचार्य राज नारायण साहेब जी को श्रद्धांजलि दी ।
तथा उनको उनको कबीरपंथ के महान वचन वंश परंपरा के विकास के लिए उनके द्वारा किए गए अतुलनीय अमूल्य कार्यों को याद किया गया ।
साहेब बन्दगी ...सहेब

Saturday, 9 December 2017

सत् कबीर वचन वंश मूल आचार्य गद्दी रोसरा के 12वे वचन वंश आचार्य श्री सुरेश दास साहेब जी के वचन वंश आचार्य पद प्राप्त करने का दृश्य

सत् कबीर वचन वंश मूल आचार्य गद्दी रोसरा के 12वे वचन वंश आचार्य श्री सुरेश दास साहेब जी के वचन वंश आचार्य पद प्राप्त करने का दृश्य
सत् कबीर वचन वंश मूल आचार्य गद्दी महादेव मठ रोसरा के परम पूज्य ग्यारहवें आचार्य श्री राज नारायण साहेब जी के सत्यलोकवाशी होने के उपरांत श्री राजनारायण साहेब जी के परम शिष्य श्री सुरेश दास साहेब जी को वचन वंश का बागडोर प्राप्त हुआ उनका कार्यकाल सन 2017 से गतिमान है ।  परम पूज्य आचार्य साहब के गद्दी सीन होने का दृश्य

वर्तमान में सत् कबीर वचन वंश मूल आचार्य गद्दी महादेव मठ रोसरा  तथा सदगुरु कबीर साहेब जी के समतामूलक मानवतावादी सत्य पंथ वचनवंश के प्रचार प्रसार के साथ साथ  समूचे कबीर पंथ  के विकास का महान कार्य बारहवें वचनवंश आचार्य श्री सुरेश दास साहेब जी के सानिध्य में जारी है।

सत् कबीर वचन वंश मूल आचार्य गद्दी महादेव मठ रोसरा कि आचार्य वचनवंशावली

सत् कबीर वचन वंश मूल आचार्य गद्दी महादेव मठ रोसरा समस्तीपुर बिहार के आचार्य प्रणाली के विभिन्न पूज्य आचार्य साहेब का पवित्र नाम तथा उनका अमूल्य अतुलनीय कार्यकाल निम्नवत है ।

1. प्रथम आदि आचार्य गुरु कृष्ण कारख साहेब
सन् 1806 से सन् 1836 तक गुरु आचार्य गद्दी पर विराजमान रहे ।

2. द्वितीय वचन वंश आचार्य श्री डम्बर साहेब जी वचन वंश आचार्य गद्दी पर विराजमान हुए जिनका कार्यकाल सन 1838 से लेकर 1862 तक रहा ।

3. वचन वंश के तृतीय आचार्य श्री गुरु झकड़ी साहेब हुए  जिनका कार्यकाल सन् 1862 से लेकर 1865 ई. तक रहा।

4. वचन वंश के चतुर्थ वंश प्रतापी आचार्य श्री पलट साहेब हुए जिनका कार्यकाल सन् 1875 ई. से लेकर 1886 ई. तक रहा।

5. वचन वंश के पंचम वंशआचार्य गुरु रामभरोष साहेब हुए जिनका कार्यकाल 1886 से लेकर 1902 ईस्वी तक रहा।

6. वचन वंश के षष्टम वंशआचार्य परम पूज्य श्री अकल साहेब हुए जिनका कार्यकाल 1902 इसवी से लेकर 1910 तक रहा।

7. वचन वंश के सप्तम वंश आचार्य वचन वंश प्रतापी गुरु टहल साहिब हुए जिनका कार्यकाल 1910 ईस्वी से लेकर 1922 ईस्वी तक रहा ।

8. वचन वंश के 8 वें वंशप्रतापी  वचनवंशआचार्य गुरु श्री बलदेव साहेब हुए जिनका कार्यकाल 1922 से लेकर 1972 तक रहा
कहा जाता है कि आदि आचार्य श्री कृष्ण कारख साहेब जी के बाद वचनवंशाचार्यो में सबसे अद्भुत विद्वता, तेजस्विता के धनी थे जिसके कारण वचन वंश आचार्य गंद्दी का विकास देश विदेश तक हुआ।

9. सत कबीर वचन वंश आचार्य गद्दी रोसरा महादेव मठ के नौवे वचन वंश आचार्य श्री जीवछ साहेब हुए जिनका कार्यकाल 1972 से लेकर 1983 तक रहा।

10. वचन वंश के दशमेशवचनवंशाचार्य दशवे  वचनवंश प्रतापी आचार्य श्री यदू साहेब हुए जिनका कार्यकाल 1983 से लेकर 1988 तक रहा।

11. सत् कबीर वचन वंश मूल आचार्य गद्दी महादेव मठ रोसरा के 11रवे वचन वंश आचार्य परम पूज्य श्री राज नारायण साहेब हुए जिनका कार्यकाल सन 1988 से लेकर 2017 तक रहा । 

वचन वंश के संत महंत और हंस जनों का कहना है कि वचन वंश के आदि आचार्य श्री कृष्ण कारख साहेब जी के बाद वचन वंश के उद्धारक और वचन वंश को देश विदेश तक पहुंचाने वाले वंशाचार्य बलदेव साहेब के बाद  तीसरे आचार्य हुए जिन्होंने भारत नेपाल भूटान सहित पूरे विश्व में वचन वंश आचार्य गद्दी महादेव मठ रोसरा का कीर्तिमान स्थापित किया । सदगुरु कबीर साहेब जी के महान सत्य पंथ वचन वंश का संत महंत और हंस जन परम पूज्य आचार्य श्री राज नारायण साहेब जी का सदा  ऋणी रहेगा उनके अतुलनीय तथा अमूल्य वचनवंश के विकास कार्यो के योगदान के लिए।

12. सत् कबीर वचन वंश मूल आचार्य गद्दी महादेव मठ रोसरा के परम पूज्य ग्यारहवें आचार्य श्री राज नारायण साहेब जी के सत्यलोकवाशी होने के उपरांत श्री राजनारायण साहेब जी के परम शिष्य श्री सुरेश दास साहेब जी को वचन वंश का बागडोर प्राप्त हुआ उनका कार्यकाल सन 2017 से गतिमान है । 

वर्तमान में सत् कबीर वचन वंश मूल आचार्य गद्दी महादेव मठ रोसरा  तथा सदगुरु कबीर साहेब जी के समतामूलक मानवतावादी सत्य पंथ वचनवंश के प्रचार प्रसार के साथ साथ  समूचे कबीर पंथ  के विकास का महान कार्य बारहवें वचनवंश आचार्य श्री सुरेश दास साहेब जी के सानिध्य में जारी है।

Friday, 8 December 2017

Sat Kabir Vachan Vansh Gaddi

Sadguru Kabir Ji Truth cult word dynasty  सत्य कबीर वचन वंश आचार्य गद्दी



Sat Kabir Vachanvansh Acharya Gaddi Rosra Samastipur Bihar
Acharya Shri Krishna Karakh Saheb Ji was born in Samastipur district of Bihar state in the holy city of Rosera, which is located on the banks of the Budi Gandak river!
According to the history available in connection with the birth year of Krishna Karakh Sahib, in 1792 AD, the birth of the Acharya Sahab ji was born of a businessman of Rosra gram who came from the Suri family of Hindu religion.
Pujya Acharya's mother's name was Lakshmin, a Karakh Saheb From childhood, he was a child of clever and divinity religious devotion. He used to regularly participate in religious affairs with his father, who saw that people would say that he would become a merchant rather than a businessman.
Krishna karakh Sahab From childhood, the caste community who opposes the work of separating man from man, used to say that human and creatures are all the parts of one God, there is no difference in them, so we have all equations in an equitable time Must look at the sight.
The religion of fidelity and the scholarship of Krishan sahib ji was unimaginable, with the hypocrisy and superstition, based on the true truth similarity, the spark of a movement was flourishing inside them!
Probably looking at this, Sadguru Kabir Sahib Ji, the Param Pujya Acharya Krishan Karakh saheb, in 14 years of age, conducted his interview with the old Gandak river in the holy village of Rosra Samastipur district of Bihar in 1806 AD.
Let us tell you that , a father of Krishna karakh, was a businessman and used to trade grains on the oxen and sell it!
Krishna karakh was also doing the same business, but when Mr. Acharya Shri Krishna karakh Sahab ji was interviewed by Sadguru Kabir, Kabir Sahab told the Karakh sahib ,that the bull which varies with him is not someone else but the true man The fraction is.
The reason for the establishment of the Vachan Vansh वचन वंश परम्परा was to establish a society based on true equality, fraternity and communal harmony, by eliminating caste and religious frenzy and inequality
  Cause of religious and religious greed is also According to Sadhguru's prediction, the descendants of Dhani Dharmadas Sahab Ji, 42, who were given by Sadguru Kabir Sahab, would torture the sixth and thirteen peary of Dharmadas ji and try to break Satpanth, Kabir Satpurus will publish the creed in the form of divine promise of parallel to the traditions of his Dharmdas ji.
The birth of the seventh descendant in the dynasty of the supreme goddess Dharmdas Sahib Ji and during the Dixon period, the Adi Acharya of Rosraa Gaddi is near the birth of Shri Krishna Karakh Sahab ji and the establishment of Rosra place, which proves the prophecy of Sadguru Kabir Sahib
This story and prophecy is present in Kabir Sagar, which is the conversation between the Sadguru Kabir Sahib ji and Dhani Dharam Das!
As the same prophecy, Sadguru Kabir Sahib publishes his word descent वचन वंश in holy city like Rosraa, while fulfilling Saturn!
He was the Sadguru Krishna Karakh Sahib!
Sadguru Kabir Sahab has interviewed Shri Acharya Krishan Karakh Sahab ji with the divine, divine knowledge of truth and devotion to Shri Sadguru Krishna Karakh Sahab Ji!
Sadguru Kabir Sahib defines and announces the place of Rosera as the Acharya Gaddi of his true cult vachan vansh tradition, and handed over the reins of Sadhguru Krishna Karakh Saheb for the development and promotion of Truth.
Conversation between Sadguru Krishna Karakh Sahab and Sadguru Kabir Sahab Ji was written, the conversation was started in the name of Sadguru Kabir Sahab ji himself by his utterance
"Panji Panth Prakash"
That which was kept today is available in Sat Kabir Vachan Vansh Acharya Gaddi mahadev Math Rosrao!
Saints-mahants and scholars associated with the Vachan Vansh tradition believe that Sadguru Kabir Sahib had instructed Acharya Krishna Karakh Sahib Ji to establish his four main monasteries in the Mithala state Which in now in Bihar and nepal !
Sadguru Kabir said that it will be according to the installation of the bull which is sitting in the door of the village of which the bull will sit on the door of the bull which is with you. It will be the place of the religion of that region and the person who will sit at the door of the same person The head of the monastery will be mahant!
According to Sadhguru's teachings, Krishan Karakh Saheb initiates the program for the purpose of establishing his four places of worship and depart from Rosra!
First of all, go to Hardiya village, District Samastipur, keep his post for the rest! 
With Saheb, the buffalo of his beloved, Shri Khushiyal Saheb alias Khaki Saheb Ji, took his seat on the door of the Khyayyyal Sahab, who was a Mushahar from the caste, which is counted as an untouchable caste and exploited victim Varang!
Dated 10th April 1833
It is interesting to think that the caste society is not allowed to participate in religious rituals and religious education social work according to Hindu religion and if no one violates it, then sin is a crime!
Sadguru Krishna Karakh Sahab has done the task of demonstrating the principle of Hinduism's hypocrisy and superstitious Rastist Manu Smriti book.
A person of Mushahar caste, according to the blessings of Acharya Shri Krishna Karakh Sahab Sadguru Kabir Sahab ji, handed over the reins of true worship and true pant to that area!
We can say that this is an example of a unique and revolutionary social change in itself, which has been projected by Sadguru Krishna karakh Saheb and Kabir Sahab ji 184 years ago!
After the establishment of the first monastery, the Sadhguru Krishna Karakh and the Satpurush, the divine part of the bull, who used to vie with them, went out to establish the next monastery.
On the way, the village Bishanpur district, Darbhanga's ultimate worshiper, sends his feet for the rest in the courtyard of Md. Kader Bakhsh Sahib Ji!
His supreme saint Kader Baksh Sahib was a Sheikh from caste and was a Muslim from Dharam. Saheb dated 13th Aghan1833. He founded Vishanpur Math and providing authentic devotion to the holy , to spread the traditions of Kabir Panth. And give the title as the abbot of the monastery.
It is also to be thought that according to the principles of Sadguru Kabir, giving a responsibility of Kabir sect to the person of a Muslim community to abolish the differences in religion and ending the separation of the sect, making the abbot is also a revolutionary social in itself. Samata is symbolic of communal harmony and goodwill!
Mohammed Kadir Baksh alias Mian Sahib ji, the revolutionary saint of Kabir cult, will be bound by Sahib Bandagi Sahib!
Sadguru Kabir Sahab ji, the true sect of the horse, after departing from Bishanpur village, for the establishment of his next monastery, along with the karakh sahib ji!
On the way, Nishihara Gora goes to the district district Darbhanga and take their seat on the door of Acharya Devadatta Sahib, the supreme worshiper, the great patriotic sage!
Devdatt was a Rajput from cast and was rich in the most energetic personality, Acharya Krishna Karakh Sahab ji gave a glimpse of the devotional deity to devadatta sahib ji and gave the responsibility of propagating the truthful devotion of truth!
In this way, Acharya Krishan Karakh Sahab Nishihara Gaura Math is established as Devadatta Sahib as abbot!
It is also a matter of thinking here that the so-called Hindu religion, which is made according to the Manuwadi doctrine, where Rajput's religion is limited to seeing the rule of the ruler and protecting the people! He should not be a ruler of religion, it is written in Manusmriti!
So, as a blessing of Sadguru Kabir Sahab Ji, Krishan Karakh Sahab ji broke the humanistic principles and made a Rajput as Dharmadhikari and gave an example of the creation of a modern classless society!
As we all know that the voice of Sadguru Kabir and his creed symbolize a revolution in itself, the promise of furthering the same revolution was undertaken by the son of Vachan vansh Pratapi Sadguru Krishna Karakh Sahab ji!
Making Vachan Vansh Pratapi Acharya Devdat Sahib as Dharmadhikari, the true Panth of Sri Krishna Karakh Sahab ji goes on ahead of his horse for the establishment of his next monastery!
On the way, Sadguru, his devotion to Kabir Sahab Ji and his horse stooge, the horse's drove, keeps his holy feet in Nawla village district Saharsaa! Acharya Sanfool Sahib ji was a Gwala belonged to the society and took his seat on the door of the same holy man Acharya Sanful Sahib.
According to the instructions of Sadguru Kabir Sahib ji, Sri Krishna Karakh Sahab ji has given a glimpse of the true devotion to Saint Sanphul Sahib ji and name Pan means Pan Chawkaa. He also appointed the Sect Officer of the word bhakti Satpathy verb bani!
In this way, Sadguru Krishna Karakh Sahib Ji, setting up the Navala Dharma Location, decorated the supreme worshiper Sunful saheb as an abbot.
Andama Dharma Location District Darbhanga has been established from Navla Dharma place. In this tradition of the Vachan Vansh, the tradition of homeless ashram guru math and hometown abbot started from the place of worship of idol worship and is still going on, even after the lineage of rich Dharmadas ji Genealogy moves.
In this way, Sadguru Krishna Karakh Saheb Ji establishes 4 Dharm places in Mithila region to spread the propagation of Satya Pant and Satya Bhakti through the blessings of Sadguru Kabir Sahab Ji!
Panji Panth Prakash
Sadguru Kabir Sahab says that there will be hundreds of branches in the Krishna Das Karakh, your promise of tradition, and there will be branches on thousands of thousands, if ROSRA Acharya will keep the branches of the Gaddi promise dynasty and the rules of law on all branches, then everyone will get tired, Will get a seat satlok !
In the development of Poetry, we have a great contribution to the lineage tradition Acharya Gaddi Rosra! Which has not been overlooked by historians and modern authors!
The word dynasty is the tradition of the Kabir cult, in which the fundamental element of caste religion is available, as the society of four main religion places the tenets of the religion, and finds the religion!
Based on humanitarian principles of Sadguru Kabir Sahib, the wording of Kabir cult is really a great means of connecting humans with humans and achieving the main purpose of human beings!
In the tradition of the promise, worship of any statue of the idol is prohibited. In this tradition, the worship of a Sadguru in the form of a Guru is worshiped, which means that Jinda Guru is worshiped!
We give great respect to our Acharya and all Saints-Mahantas to keep this great promise of living tradition alive.
I now finally give a sahib bandi in the feet of all the saints, Mahant Acharya Guru ji, with the words of the Vachan Dynasty and Kabirpanthi, along with our Acharya Shri Krishna Vihir Sahab, Satpurus Paramatma Swaroop Sadguru Kabir Sahab ji.
Saheb bandagi... Saheb

Thursday, 7 December 2017

Sat Kabir Vachan vansh Acharya Gaddi Rosera Samastipur Bihar

सत् कबीर वचनवंश आचार्य गद्दी रोसरा समस्तीपुर बिहार

सत् कबीर वचनवंश आचार्य गद्दी रोसरा समस्तीपुर बिहार के आदि आचार्य सद्गुरु कृष्ण कारख साहेब और कबीर पंथ का वचन वंश परंपरा।

आचार्य श्री कृष्ण कारख साहेब  जी का जन्म बिहार राज्य के समस्तीपुर जिले के अंतर्गत परम पवित्र नगरी रोसरा ग्राम में हुआ था जो कि बूढ़ी गंडक नदी के तट पर अवस्थित है !

कृष्ण कारख साहब जी के जन्म वर्ष के संबंध में जो इतिहास में उपलब्ध जानकारी है उसके अनुसार 1792 ई. मे पूज्य आचार्य कारख साहब जी का जन्म हुआ था रोसरा ग्राम की एक व्यापारी बृजमोहन कारक जी के जोकि हिंदू धर्म के सूरी परिवार से आते थे।

पूज्य आचार्य जी के माता जी का नाम लक्ष्मीन था कारख साहब बचपन से हि चतुर और दिव्या धर्मनिष्ठ प्रवृत्ति के बालक थे वह नित्य प्रतिदिन पिता के साथ धर्म संबंधी कार्यों में सहभागी बनते थे जिसको देखकर लोग कहते थे कि यह व्यापारी नहीं बल्कि साधु बन जाएगा!

कृष्ण कारख साहब बचपन से ही जात संप्रदाय जोकि मनुष्य को मनुष्य से अलग करने का काम करती है इसका विरोध करते थे और कहा करते थे कि मानव और जीव सभी एक ईश्वर के अंश है इनमे कोई भिन्नता नहीं है इसलिए हमें सभी जीवो को एक समतामूलक समय्क दृष्टि से देखना चाहिए।

कृष्ण कारख साहब जी की धर्म निष्ठा और विद्वता अपरंपार थी पाखंड और अंधविश्वास से ईतर सत्य समानता पर आधारित उनके अंदर एक आंदोलन का चिंगारी पनप रहा था !

शायद इसी को देख कर सदगुरु कबीर साहब जी ने परम पूज्य आचार्य  कृष्ण कारख साहब जी को 14 वर्ष की अवस्था मे अपना साक्षात्कार बूढ़ी गंडक नदी के किनारे पवित्र ग्राम रोसरा समस्तीपुर जिला बिहार में 1806 ई.  को कराया।

आपको बता दें कि कृष्ण कारख साहब जी के पिता जोकी एक व्यापारी थे और बैल पर अनाज लादकर बेचने का व्यापार करते थे !

उसी व्यापार को कृष्ण कारख साहब भी करते थे परंतु जब आदि आचार्य श्री कृष्ण कारख साहब जी को सदगुरु कबीर का साक्षात्कार हुआ तब कबीर साहब ने  कारख  साहब जी को बताया कि वह बैल जो उनके साथ विचरण करता है वो कोई और नहीं बल्कि सत्य पुरुष का अंश है।

वचन वंश परंपरा की स्थापना का कारण समाज में फैली हुई जाती और धार्मिक उन्माद और असमानता को समाप्त करके सत्य समानता बंधुत्व और सांप्रदायिक सौहार्द पर आधारित समाज की स्थापना करना था तथा धार्मिक और रूप से एक कारण धनी धर्मदास जी की वंशावली मे काल का झपट्टा मारना भी है ! 

धनी धर्मदास साहब जी के वंश 42 जो कि सदगुरु कबीर साहब के द्वारा दिया गया 42 पीडी तक गुरुआई का आशीर्वाद था सद्गुरु के भविष्यवाणी के अनुसार धर्मदास जी के छठवी सातवी और तेरवी पिरी को काल  सताएगा और सतपंथ को खंडित करने का प्रयास करेगा उसी समय सदगुरु कबीर सतपुरुष परमात्मा की आज्ञानुसार अपने धर्मदास जी के बिंद वंश परंपरा के समानांतर  वचन वंश परंपरा के रूप में पंथ को प्रकाशित करेंगे! 

परम पूज्य धर्मदास साहब जी की वंश परंपरा में सातवे वंशगुरू का  जन्म और दीक्षां काल समय रोसरा गद्दी के आदि आचार्य श्री कृष्ण कारख साहब जी के जन्म और रोसरा जगह की स्थापना के आस पास है जो कि  सदगुरु कबीर साहब जी की भविष्यवाणी को सत्य साबित करता है

यह कथा और भविष्यवाणी सदगुरु कबीर साहब जी के द्वारा रचित  कबीर सागर ग्रंथ में उपस्थित है!

उसी भविष्यवाणी को सदगुरु कबीर साहब सत्यार्थ चरितार्थ करते हुए  रोसरा जैसी पवित्र नगर में अपने वचन वंश अंश को प्रकाशित करते हैं !

वह वचन वंश अंश सद्गुरु कृष्ण कारख साहब हि थे !

सदगुरु कबीर साहब ने आदि आचार्य कृष्ण कारख साहब जी को सत्य और सत्य भक्ति के सागर दिव्य आध्यात्मिक ज्ञान से  श्री सद्गुरु कृष्ण कारख साहब जी को साक्षात्कार करवाया!

 सदगुरु कबीर साहब जी अपने सत्य पंथ वचन वंश परंपरा के आचार्य गद्दी के रूप में रोसड़ा जगह को परिभाषित और उद्घोषित करते है  तथा सत्य पंथ के  विकास और प्रचार प्रसार की बागडोर सद्गुरु कृष्णा कारख साहब को सौंपते है!

सदगुरु कृष्ण कारक साहब और सदगुरु कबीर साहब जी के बीच जो वार्तालाप हुई, वार्तालाप को लिपि बध्ध  किया गया जिसका नाम सदगुरु कबीर साहब जी ने स्वयं अपने मुखारविंद से 

"पांजी पंथ प्रकाश "

रखा था जो कि आज भी सत कबीर वचन वंश आचार्य गद्दी  रोसरा मे उपलब्ध है !

वचन बंसी परंपरा से जुड़े संत-महंत और विद्वान लोगों का मानना है कि सदगुरु कबीर साहब ने आदि आचार्य कृष्णा कारख साहब जी को आज्ञा दिया था कि  मिथला राज्य में अपने चार मुख्य मठ स्थापित करो!


सद्गुरु के वचना अनुसार कृष्ण कारख साहेब अपने चार मुख्य स्थान की स्थापना हेतु क्षेत्र भ्रमण के कार्यक्रम को आरंभ करते हैं और रोसरा से प्रस्थान करते हैं!

 और मिथिला प्रदेश जो कि आज बिहार के नाम से जाना जाता है वहा चार स्थानों पर मुख्य "सत्य कबीर वचन वंश आचार्य गद्दी की स्थापना करते हैं जोकि निम्नलिखित है!
01. हरदिया जिला समस्तीपुर बिहार
 02. बिशनपुर जिला दरभंगा बिहार
 03. गोरा जिला दरभंगा बिहार
04. नौला जिला  सहरसा बिहार

इन पवित्र ग्रामो  के नाम से सदगुरु कारख साहेब
" सत् कबीर वचन वंश आचार्य  गद्दी के नाम से प्रसिद्ध हुआ है!

कबीर पंथ का यह वचन वंश परंपरा बिहार ही नहीं बल्कि पूरे विश्व भर में कबीर पंथ और सद्गुरु कबीर के सत्य भक्ति का परचम लहरा रहा है!



Wednesday, 6 December 2017

सत् कबीर वचनवंश आचार्य गद्दी महादेवमठ रोसरा समस्तीपुर बिहार


सत् कबीर वचनवंश आचार्य गद्दी रोसरा समस्तीपुर बिहार

के आदि आचार्य श्री कृष्ण कारख साहेब 



सदगुरु कबीर साहेब जी का सत्यपंथ वचन वंश
सत् कबीर वचनवंश आचार्य गद्दी रोसरा समस्तीपुर बिहार
आचार्य श्री कृष्ण कारख साहेब  जी का जन्म बिहार राज्य के समस्तीपुर जिले के अंतर्गत परम पवित्र नगरी रोसरा ग्राम में हुआ था जो कि बूढ़ी गंडक नदी के तट पर अवस्थित है !
कृष्ण कारख साहब जी के जन्म वर्ष के संबंध में जो इतिहास में उपलब्ध जानकारी है उसके अनुसार 1792 ई. मे पूज्य आचार्य कारख साहब जी का जन्म हुआ था रोसरा ग्राम की एक व्यापारी बृजमोहन कारक जी के जोकि हिंदू धर्म के सूरी परिवार से आते थे।
पूज्य आचार्य जी के माता जी का नाम लक्ष्मीन था कारख साहब बचपन से हि चतुर और दिव्या धर्मनिष्ठ प्रवृत्ति के बालक थे वह नित्य प्रतिदिन पिता के साथ धर्म संबंधी कार्यों में सहभागी बनते थे जिसको देखकर लोग कहते थे कि यह व्यापारी नहीं बल्कि साधु बन जाएगा!
कृष्ण कारख साहब बचपन से ही जात संप्रदाय जोकि मनुष्य को मनुष्य से अलग करने का काम करती है इसका विरोध करते थे और कहा करते थे कि मानव और जीव सभी एक ईश्वर के अंश है इनमे कोई भिन्नता नहीं है इसलिए हमें सभी जीवो को एक समतामूलक समय्क दृष्टि से देखना चाहिए।
कृष्ण कारख साहब जी की धर्म निष्ठा और विद्वता अपरंपार थी पाखंड और अंधविश्वास से ईतर सत्य समानता पर आधारित उनके अंदर एक आंदोलन का चिंगारी पनप रहा था !
शायद इसी को देख कर सदगुरु कबीर साहब जी ने परम पूज्य आचार्य  कृष्ण कारख साहब जी को 14 वर्ष की अवस्था मे अपना साक्षात्कार बूढ़ी गंडक नदी के किनारे पवित्र ग्राम रोसरा समस्तीपुर जिला बिहार में 1806 ई.  को कराया।
आपको बता दें कि कृष्ण कारख साहब जी के पिता जोकी एक व्यापारी थे और बैल पर अनाज लादकर बेचने का व्यापार करते थे !
उसी व्यापार को कृष्ण कारख साहब भी करते थे परंतु जब आदि आचार्य श्री कृष्ण कारख साहब जी को सदगुरु कबीर का साक्षात्कार हुआ तब कबीर साहब ने  कारख  साहब जी को बताया कि वह बैल जो उनके साथ विचरण करता है वो कोई और नहीं बल्कि सत्य पुरुष का अंश है।
वचन वंश परंपरा की स्थापना का कारण समाज में फैली हुई जाती और धार्मिक उन्माद और असमानता को समाप्त करके सत्य समानता बंधुत्व और सांप्रदायिक सौहार्द पर आधारित समाज की स्थापना करना था तथा धार्मिक और रूप से एक कारण धनी धर्मदास जी की वंशावली मे काल का झपट्टा मारना भी है !
धनी धर्मदास साहब जी के वंश 42 जो कि सदगुरु कबीर साहब के द्वारा दिया गया 42 पीडी तक गुरुआई का आशीर्वाद था सद्गुरु के भविष्यवाणी के अनुसार धर्मदास जी के छठवी सातवी और तेरवी पिरी को काल  सताएगा और सतपंथ को खंडित करने का प्रयास करेगा उसी समय सदगुरु कबीर सतपुरुष परमात्मा की आज्ञानुसार अपने धर्मदास जी के बिंद वंश परंपरा के समानांतर  वचन वंश परंपरा के रूप में पंथ को प्रकाशित करेंगे!
परम पूज्य धर्मदास साहब जी की वंश परंपरा में सातवे वंशगुरू का  जन्म और दीक्षां काल समय रोसरा गद्दी के आदि आचार्य श्री कृष्ण कारख साहब जी के जन्म और रोसरा जगह की स्थापना के आस पास है जो कि  सदगुरु कबीर साहब जी की भविष्यवाणी को सत्य साबित करता है
यह कथा और भविष्यवाणी सदगुरु कबीर साहब जी के द्वारा रचित  कबीर सागर ग्रंथ में उपस्थित है!
उसी भविष्यवाणी को सदगुरु कबीर साहब सत्यार्थ चरितार्थ करते हुए  रोसरा जैसी पवित्र नगर में अपने वचन वंश अंश को प्रकाशित करते हैं !
वह वचन वंश अंश सद्गुरु कृष्ण कारख साहब हि थे !
सदगुरु कबीर साहब ने आदि आचार्य कृष्ण कारख साहब जी को सत्य और सत्य भक्ति के सागर दिव्य आध्यात्मिक ज्ञान से  श्री सद्गुरु कृष्ण कारख साहब जी को साक्षात्कार करवाया!
सदगुरु कबीर साहब जी अपने सत्य पंथ वचन वंश परंपरा के आचार्य गद्दी के रूप में रोसड़ा जगह को परिभाषित और उद्घोषित करते है  तथा सत्य पंथ के  विकास और प्रचार प्रसार की बागडोर सद्गुरु कृष्णा कारख साहब को सौंपते है!
सदगुरु कृष्ण कारक साहब और सदगुरु कबीर साहब जी के बीच जो वार्तालाप हुई, वार्तालाप को लिपि बध्ध  किया गया जिसका नाम सदगुरु कबीर साहब जी ने स्वयं अपने मुखारविंद से
"पांजी पंथ प्रकाश "
रखा था जो कि आज भी सत कबीर वचन वंश आचार्य गद्दी  रोसरा मे उपलब्ध है !
वचन बंसी परंपरा से जुड़े संत-महंत और विद्वान लोगों का मानना है कि सदगुरु कबीर साहब ने आदि आचार्य कृष्णा कारख साहब जी को आज्ञा दिया था कि  मिथला राज्य में अपने चार मुख्य मठ स्थापित करो!
सदगुरु कबीर ने कहा की इसकी स्थापना आपके साथ जो बैल है उसके परिभ्रमण के बीच आसन धरने  के अनुसार होगा मतलब की बैल जिस गांव  के  जिस व्यक्ति के दरवाजे पर  बैठेगा वही उस क्षेत्र का धर्म स्थान होगा  और जिस व्यक्ति के दरवाजे पर बैेल बैठेगा वही व्यक्ति मठ का मुखिया होगा महंत होगा!
सद्गुरु के वचना अनुसार कृष्ण कारख साहेब अपने चार धर्म स्थान की स्थापना हेतु क्षेत्र भ्रमण के कार्यक्रम को आरंभ करते हैं और रोसरा से प्रस्थान करते हैं!
चलते चलते सबसे पहले बैल हरदिया गांव जिला समस्तीपुर में अपना पद विश्राम हेतु रखता हैं! 
साहेब के साथ बैल श्री खुशीयााल साहब उर्फ खाकी साहब जी के दरवाजे पर अपना आसन ग्रहण करते हैं खुशीयाल साहब जाति से मुशहर थे जो कि एक अछूत जाति और शोषित पीड़ित वरग के रूप में गिना जाता है!
तिथि 10 अगहन 1833 इ.
सोचने बाली बात है कि  जिस जाति समाज को हिंदू धर्म के अनुसार धार्मिक विधिशास्त्र और धार्मिक शिक्षा सामाजिक कार्यों में भाग लेने कि  अनुमति नहीं है और  कोई शूद्र इसका उल्लंघन करता है तो वह पाप है अपराध है !
हिंदू धर्म के पाखंड और अंधविश्वास रूपी जातिवादी मनु स्मृति ग्रंथ की जो सिद्धांत थी उसको सीधा ठेंगा दिखाने का काम सद्गुरु कृष्ण कारख साहब ने किया !
मुशहर जाति के एक व्यक्ति को आचार्य श्री कृष्ण कारख साहब सदगुरु कबीर साहब जी के आशीर्वाद के फलस्वरूप सत्य भक्ति और सत्य पंत का बागडोर उस क्षेत्र के लिए सौंपते है !
हम कह सकते है कि यह अपने आप में अद्वितीय और क्रांतिकारी  सामाजिक परिवर्तन का उदाहरण है जो कि आज से 184 वर्ष पहले सद्गुरु कृष्ण कारक और कबीर साहब जी के द्वारा प्रतिपादित किया किया गया !
प्रथम मठ स्थापना के बाद सद्गुरु कृष्ण कारख साहब और सत्पुरुष परमात्मा अंश बैल जो उनके साथ  विचरण करता था अगले मठ स्थापना के लिए निकल पड़ते हैं ।
चलते चलते ग्राम बिशनपुर जिला दरभंगा के परम पूज्य संत मो.कादिर बख्श साहब जी की आंगन में अपने चरणों को विश्राम हेतु उपस्थित करते हैं !
परम पूज्य संत कादीर बक्स साहब उर्फ मींया  साहब जाति से शेख थे और धर्म से मुसलमान थे साहेब दिनांक 13 अगहन 1833 ई. विशनपुर मठ की स्थापना करते हैं और पूज्यनीय मीयां साहब को सत्य भक्ति प्रदान करते हुए कबीर पंथ के वचन वंश परंपरा को प्रचारित करने का दायित्व देते हैं और मठ के मठाधीश के रूप में नवाजते है।
यहां पर भी सोचने वाली बात है कि सदगुरु कबीर के सिद्धांतों के अनुरूप संप्रदाय का भेद भाव समाप्त करने हेतु धर्म में मतभेद को समाप्त करने हेतु एक मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति को कबीर पंथ का दायित्व देना और मठाधीश बनाना यह भी अपने आप में एक क्रांतिकारी सामाजिक समता, सांप्रदायिक सौहार्द और सद्भावना का प्रतीक है !
कबीर पंथ  के क्रांतिकारी संत मो.कादिर बखश उर्फ मियां साहब जी को साहिब बंदगी साहिब बंदगी !
सदगुरु कबीर साहब जी का सत्य पंथ का घोड़ा कारख साहब जी को लेकर अपने अगले मठ की स्थापना के लिए बिशनपुर ग्राम से प्रस्थान करता है !
चलते चलते निशिहारा गोरा ग्राम जिला दरभंगा पहुंचते हैं और परम पूज्य वचन वंश प्रतापी संत आचार्य देवदत्त साहब जी के दरवाजे पर अपना आसन ग्रहण करते हैं !
देवदत्त शाहब जाति से राजपूत थे और अत्यंत ऊर्जावान प्रतापी व्यक्तित्व के धनी थे आचार्य कृष्ण कारख साहब जी ने देवदत्त साहब जी को सत्य भक्ति का साक्षात्कार कराया तथा सत्य भक्ति सत्य पंथ के प्रचार प्रसार का जिम्मेवारी दिया !
इस तरह आदि आचार्य कृष्ण कारख साहब  नीशीहारा गौरा मठ की स्थापना करते हुए देवदत्त साहब को मठाधीश के रूप में नवाजते है !
यहां पर भी सोचने वाली बात है तथाकथित हिंदू धर्म जो कि मनुवादी सिद्धांत के अनुसार बना है जिसमें राजपूत का धर्म राज पाठ देखना और जनता की रक्षा करना तक सीमित है ! उसे धर्म का अधिकारी होना नहीं चाहिए ऐसा मनुस्मृति में लिखा है !
तो सदगुरु कबीर साहब जी के आशीर्वाद स्वरुप कृष्ण कारख साहब जी ने मनुवादी सिद्धांतों को तोड़ते हुए एक राजपूत को धर्माधिकारी बनाकर आधुनिक वर्ग विहीन समाज की रचना का उदाहरण दिया !
जैसा की हम  सभी जानते है कि  सदगुरु कबीर की वाणी और उनका पंथ स्वयं में एक क्रांति का प्रतीक है उसी क्रांति को आगे बढ़ाने का काम वचन वंश प्रतापी सद्गुरु कृष्ण कारख साहब जी ने किया !
वचन वंश प्रतापी आचार्य देवद्त साहब जी को  धर्माधिकारी बनाते हुए परम पूज्य श्री कृष्ण कारख साहब जी का सत्य पंथ का घोडा आगे चलता है अपने अगले मठ की स्थापना हेतु!
चलते चलते सदगुरु कबीर साहब जी का सत्य भक्ति और वचन वंश का घोड़ा नवला ग्राम जिला सहरसा में अपना पावन चरण रखता  है ! और उसी ग्राम के परम पूज्य आचार्य सनफुल साहब जी के दरवाजे पर अपना आसन ग्रहण करते हैं आचार्य सनफूल साहब जी ग्वाला यादव समाज के थे ।
सदगुरु कबीर साहब जी के आज्ञा अनुसार श्रीकृष्ण कारख साहब जी ने संत श्री सनफूल साहब जी को सत्य भक्ति का साक्षात्कार कराया और नाम पान मतलब पान चौंका दिया साथ हि सत्य भक्ति सतपंथ वचन बंश का क्षेत्रअधिकारी भी  नियुक्त किया!
इस तरह से सद्गुरु कृष्ण कारख साहब जी ने नवला धर्म स्थान की स्थापना करते हुए परम पूज्य संत सनफुल साहब जी को मठाधीश के रूप में सुशोभित किया।
नवला धर्म स्थान से अन्दामा धर्म स्थान जिला दरभंगा की स्थापना हुई है वचन वंश के इस परंपरा में गृहस्थ आश्रम गुरु मठ और गृहस्थ मठाधीश की परंपरा नवला धर्म स्थान से शुरू हुई और अभी तक चल रही है वहां भी धनी धर्मदास जी के वंशावली के जैसे ही वंशावली चलती  है।
इस तरह से सद्गुरु कृष्ण कारख साहेब जी ने सदगुरु कबीर साहब जी की आज्ञानुसार सत्य पंत और सत्य भक्ति का प्रचार प्रसार करने हेतू मिथिला प्रदेश में 4 धर्म स्थानों की स्थापना करते हैं !
पांजी पंथ प्रकाश
में सदगुरु कबीर साहब कहते हैं कि हे कृष्णा दास कारख आपकी वचन वंश परंपरा में सैकड़ों शाखाएं होंगी और उसके हजारों पर शाखाएं होंगे यदि ऱोसरा आचार्य गद्दी वचन वंश परंपरा का नियम और कानून सभी शाखाएं पर शाखाएं निभाती रहेंगी तो सभी तड जाएंगी सभी को सत्य लोक का आसन मिलेगा !
कबीरपंथ के विकास में वजन वंश परंपरा आचार्य गद्दी रोसरा का बहुत ही बड़ा योगदान है! जिसको इतिहासकार  और आधुनिक लेखकों ने दरकिनार किया है उस ओर ध्यान नहीं दिया है !
वचन वंश परंपरा कबीर पंथ का वह परंपरा है जिसमें जाति धर्म संप्रदाय का विखंडन का मूल तत्व उपलब्ध है जैसा की चार मुख्य धर्म स्थानों के मठाधीशों के समाज धर्म और जाति को देख कर पता चलता है!
सदगुरु कबीर साहब जी के मानवतावादी सिद्धांतों पर आधारित कबीर पंथ का वचन वंश परंपरा वाकई में मानव को मानव से जोड़ने का और मानव के मुख्य उद्देश्य को प्राप्त करने का एक बहुत बड़ा साधन है !
वचन वंश परंपरा में किसी भी मूर्ति चित्र का पूजा वर्जित है इस परंपरा में साक्षात सद्गुरु स्वरूप गुरु की पूजा की जाती है मतलब जिंदा गुरु  की पूजा की जाती है!
हम अपने आदि आचार्य तथा सभी संत-महंत जनों को इस महान वचन वंश परंपरा को जीवित रखने के लिए कोटि कोटि धंयवाद देते हैं।
मैं अब अंत में अपने आदि आचार्य श्री कृष्ण कारख साहब ,सत्पुरुष परमात्मा स्वरूप सदगुरु कबीर साहब जी के साथ वचन वंश परंपरा और कबीरपंथ के सभी संत महंत आचार्य गुरु जन के चरणो में साहिब बंदगी  अर्पित करता हू।
अंत में आप सभी को  साहिब बंदगी, साहिब बंदगी, साहिब बंदगी ।