सद्गुरु कबीर साहेब जी के जीवन यात्रा से जुडे मुख्य स्मारक

कबीरपंथ तीर्थस्थल
काशी/वाराणसी (बनारस)
“सद्गुरु कबीर प्राकट्य स्मारक”

  : वाराणसी (उ.प्र.) में  सद्गुरु कबीर साहेब का प्राकट्य स्थल लहरतारा तालाब, जो कीचड़-पानी से भरा था, जहाँ स्मारक  व भवन बनाना सहज न था | तब, स्मारक को सृदृढ़ स्थिति में लाने के लिये, 26 फुट गहराई से, चौड़ी नीव को उठाया गया और उसके उपर भवन निर्माण का कार्य सुचारू रूप से प्रारंभ किया गया | इस महान कर्मयज्ञ में देश- विदेश के अनेकानेक संत, भक्त एवं अनुयायियों ने भाग लेकर, यथाशक्ति निज तन-मन-धन से अपना संपूर्ण योगदान दिया |  जो “सद्गुरु कबीर प्राकट्य स्मारक” के नाम से जाना जाता है |
 इससे बहुत लोग प्रभावित होते हैं और इसके दर्शन से स्वंय को कृतार्थ करते हैं | इस धर्म स्थल पर प्रति वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी –त्रयोदशी एवं चतुर्दशी को कबीर जयंती महोत्सव, हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है | इस शुभ अवसर पर विराट संत-समागम का सुआयोजन होता है, जिसमे अनेक संत-महंत तथा सुविज्ञ महापुरुष उत्साहपूर्वक भाग लेते है | इसमें असंख्य श्रद्धालु सेवक-भक्त यहाँ आकर सद्गुरू कबीर साहेब की शब्द-वाणियों और संतो के सत्संग-प्रवचन, भजन-वाणी, सात्विक यज्ञ – चौका आरती  का लाभ उठाते हैं |




सिद्ध पीठ [कबीर चौरा मठ (नीरू-टीला)]:इस स्थान पर कबीर साहेब का पालन पोषण हुआ | उनका बचपन यहीं पर बीता |



मगहर - रेलवे स्टेशन

​मगहर रेलवे स्टेशन जाने के लिये, गोरखपुर (उ.प्र.) से जाना पड़ता है | यह भारत का एक मात्र रेलवे स्टेशन है जहा हर जगह कबीर साहेब की दोहे और साखियों को अंकित किया गया है | रेलवे स्टेशन में उतरते ही व्यक्ति को एक विशेष तरह की शान्ति की अनुभूति होती है | यहाँ से लगभग आधा किलोमीटर दूर, सद्गुरू कबीर साहेब की समाधी और मजार स्थित है |

मगहर
सदगुर कबीर साहेब की निर्वाण स्थल – कबीर चौरा धाम
(कबीर साहेब की समाधी एवं मजार स्थल)
गोरखपुर (मगहर) के नवाब बिजली खान पठान काशी गए और सद्गुरू कबीर साहेब से विनम्र निवेदन किया कि वे मगहर चलकर पिछले बारह वर्षो से, लगातार पड़ रहे अकाल, अन्न-जल के आभाव  से त्रस्त उनके प्रजा को,  जो एक नेपाली संत श्री परमहंस द्वारा शापित है,  इस संकट से मुक्ति दिलाएं | गुरुदेव की गोरखपुर जाने की बात जब काशी के लोगों ने सुनी तो लोगों ने एक स्वर में विरोध किया | उन्होंने गुरुदेव से निवेदन किया की वे काशी को न छोड़े | संसार के लोग काशी में आकर प्रानोत्सर्ग करते है और आप मुक्ति-क्षेत्र, को छोड़कर, अमुक्त-क्षेत्र जा रहे है | उस समय ये माना जाता था कि किसी भी मनुष्य की  “काशी में मरने से मुक्ति होती है और अन्यत्र मरने से खर-कुकर का जन्म होता है” |


तब कबीर साहेब ने कहा की “मुक्ति का सम्बन्ध कर्मो से होता है, न की किसी जगह से “| जो अच्छे कर्म करेगा, वो कही भी मरे, अवश्य मुक्ति पायेगा | गुरुदेव की बात सुनकर उपस्थित सभी संत मण्डली निरुत्तर हो गए | गुरुदेव ने कहा – “ अब काशी में मै इस शरीर का त्याग नहीं करूँगा | क्योकि मुझे लोगों में व्याप्त भ्रम, ढोंग, पाखंड एवं अन्धविश्वास को दूर करना है और अब मै आमी नदी के तट पर ही समाधी लूँगा” |
“क्या काशी क्या मगहर ऊसर, जाके हृदया राम बसे मोरा |
जो काशी तन तजे कबीरा, तो रामहि कौन निहोरा” ||
तब सद्गुरू कबीर साहेब और समस्त संत मंडली गोरखपुर (मगहर) के लिये चल पड़ी | यह उनका काशी से अंतिम प्रस्थान था | कबीर साहेब को साथ लिये नवाब बिजली खान पठान, पांचवे दिन मगहर के पास आमी नदी के पूर्वी तट पर पहुँच गए एवंम सर्व प्रथम उस स्थान पर गए, जहा पर आज “कबीर-धुनी” स्थित है (जिसे “कसरवल”  गाँव के नाम से भी जाना जाता है) और जहाँ पर गुरुदेव का एक सुरम्य मंदिर भी बना हुआ है |
उसी स्थान पर सद्गुरू ने नवाब को आदेश दिया कि यहाँ पर सर्व-प्रथम संतो का एक विराट भंडारा करो , जिसमे दूर-दूर के संतों को आमंत्रित करो और प्रेमपूर्वक उनकी सेवा करो | तभी तुम्हारा क्षेत्र संत के शाप से मुक्त होगा |

चार दिनों तक यह भोजन भंडारा चलता रहा | सद्गुरू कबीर साहेब की कृपा से उस क्षेत्र के सभी भूखे अन्न विहीन लोग भोजन से तृप्त हो गए | वर्षा का संकट को कबीर साहेब ने पल भर में ही दूर कर दिया | नदी, नाला, तालाब, कुवां, खेत-खलिहान आदि सभी पानी से भर गए |  अकालग्रस्त लोगों ने बारह वर्षों के बाद वर्षा का दर्शन किया | खेती-बारी का काम शुरू हो गया | अनिश्चतता का विनाश हुआ | सभी लोग खुशहाल हो गए | यह चर्चा सारे अकालपीड़ित क्षेत्रों में फैल गई  कि सद्गुरू कबीर साहेब के आने से लोग अकाल मुक्त हो गए |

सवंत १५७५ (सन १५१८ ) की माघ सुदी एकादशी को मगहर में कबीर साहेब अंतर्ध्यान हो गए | उनके शरीर के स्थान पर पुष्प एवं चादर मिले, जिसे उनके हिन्दू व मुस्लिम अनुयायियों (हिन्दू राजा – वीरदेव सिंह बघेल और मुस्लीलीम नवाब बिजली खान पठान”)  ने बांटकर इस जगह पर समाधी एवं मजार बनवाई  जो आज भी मगहर में विद्यमान है | विश्व में ऐसा एक मात्र आश्चर्य है कि एक ही महापुरुष या संत की “समाधी” भी है और “मजार” भी |