Friday, 15 June 2018

जेष्ठ 16 1806 इ. वचनवंशीय गद्दी स्थापना दिवस विशेष:- आदि आचार्य सद्गुरु कृष्ण कारख साहेब और कबीर पंथ का वचन वंश परंपरा

जेष्ठ 16 1806 इ. वचनवंशीय गद्दी स्थापना दिवस विशेष:- आदि आचार्य सद्गुरु कृष्ण कारख साहेब और कबीर पंथ का वचन वंश परंपरा।
Acharya sri Krishna Karakh Saheb And Sadguru Kabir Saheb 
आचार्य श्री कृष्ण कारख साहेब  जी का जन्म बिहार राज्य के समस्तीपुर जिले के अंतर्गत परम पवित्र नगरी रोसरा ग्राम में हुआ था जो कि बूढ़ी गंडक नदी के तट पर अवस्थित है !
कृष्ण कारख साहब जी के जन्म वर्ष के संबंध में जो इतिहास में उपलब्ध जानकारी है उसके अनुसार 1792 ई. मे पूज्य आचार्य कारख साहब जी का जन्म हुआ था रोसरा ग्राम की एक व्यापारी बृजमोहन कारक जी के जोकि हिंदू धर्म के सूरी परिवार से आते थे।
पूज्य आचार्य जी के माता जी का नाम लक्ष्मीन था कारख साहब बचपन से हि चतुर और दिव्या धर्मनिष्ठ प्रवृत्ति के बालक थे वह नित्य प्रतिदिन पिता के साथ धर्म संबंधी कार्यों में सहभागी बनते थे जिसको देखकर लोग कहते थे कि यह व्यापारी नहीं बल्कि साधु बन जाएगा!
कृष्ण कारख साहब बचपन से ही जात संप्रदाय जोकि मनुष्य को मनुष्य से अलग करने का काम करती है इसका विरोध करते थे और कहा करते थे कि मानव और जीव सभी एक ईश्वर के अंश है इनमे कोई भिन्नता नहीं है इसलिए हमें सभी जीवो को एक समतामूलक समय्क दृष्टि से देखना चाहिए।
कृष्ण कारख साहब जी की धर्म निष्ठा और विद्वता अपरंपार थी पाखंड और अंधविश्वास से ईतर सत्य समानता पर आधारित उनके अंदर एक आंदोलन का चिंगारी पनप रहा था !
शायद इसी को देख कर सदगुरु कबीर साहब जी ने परम पूज्य आचार्य  कृष्ण कारख साहब जी को 14 वर्ष की अवस्था मे अपना साक्षात्कार बूढ़ी गंडक नदी के किनारे पवित्र ग्राम रोसरा समस्तीपुर जिला बिहार में 1806 ई.  को कराया।
आपको बता दें कि कृष्ण कारख साहब जी के पिता जोकी एक व्यापारी थे और बैल पर अनाज लादकर बेचने का व्यापार करते थे !
उसी व्यापार को कृष्ण कारख साहब भी करते थे परंतु जब आदि आचार्य श्री कृष्ण कारख साहब जी को सदगुरु कबीर का साक्षात्कार हुआ तब कबीर साहब ने  कारख  साहब जी को बताया कि वह बैल जो उनके साथ विचरण करता है वो कोई और नहीं बल्कि सत्य पुरुष का अंश है।
वचन वंश परंपरा की स्थापना का कारण समाज में फैली हुई जाती और धार्मिक उन्माद और असमानता को समाप्त करके सत्य समानता बंधुत्व और सांप्रदायिक सौहार्द पर आधारित समाज की स्थापना करना था तथा धार्मिक और रूप से एक कारण धनी धर्मदास जी की वंशावली मे काल का झपट्टा मारना भी है !
धनी धर्मदास साहब जी के वंश 42 जो कि सदगुरु कबीर साहब के द्वारा दिया गया 42 पीडी तक गुरुआई का आशीर्वाद था सद्गुरु के भविष्यवाणी के अनुसार धर्मदास जी के छठवी सातवी और तेरवी पिरी को काल  सताएगा और सतपंथ को खंडित करने का प्रयास करेगा उसी समय सदगुरु कबीर सतपुरुष परमात्मा की आज्ञानुसार अपने धर्मदास जी के बिंद वंश परंपरा के समानांतर  वचन वंश परंपरा के रूप में पंथ को प्रकाशित करेंगे!
परम पूज्य धर्मदास साहब जी की वंश परंपरा में सातवे वंशगुरू का  जन्म और दीक्षां काल समय रोसरा गद्दी के आदि आचार्य श्री कृष्ण कारख साहब जी के जन्म और रोसरा जगह की स्थापना के आस पास है जो कि  सदगुरु कबीर साहब जी की भविष्यवाणी को सत्य साबित करता है
यह कथा और भविष्यवाणी सदगुरु कबीर साहब जी के द्वारा रचित  कबीर सागर ग्रंथ में उपस्थित है!
उसी भविष्यवाणी को सदगुरु कबीर साहब सत्यार्थ चरितार्थ करते हुए  रोसरा जैसी पवित्र नगर में अपने वचन वंश अंश को प्रकाशित करते हैं !
वह वचन वंश अंश सद्गुरु कृष्ण कारख साहब हि थे !
सदगुरु कबीर साहब ने आदि आचार्य कृष्ण कारख साहब जी को सत्य और सत्य भक्ति के सागर दिव्य आध्यात्मिक ज्ञान से  श्री सद्गुरु कृष्ण कारख साहब जी को साक्षात्कार करवाया!
सदगुरु कबीर साहब जी अपने सत्य पंथ वचन वंश परंपरा के आचार्य गद्दी के रूप में रोसड़ा जगह को परिभाषित और उद्घोषित करते है  तथा सत्य पंथ के  विकास और प्रचार प्रसार की बागडोर सद्गुरु कृष्णा कारख साहब को सौंपते है!
सदगुरु कृष्ण कारक साहब और सदगुरु कबीर साहब जी के बीच जो वार्तालाप हुई, वार्तालाप को लिपि बध्ध  किया गया जिसका नाम सदगुरु कबीर साहब जी ने स्वयं अपने मुखारविंद से
"पांजी पंथ प्रकाश "
रखा था जो कि आज भी सत कबीर वचन वंश आचार्य गद्दी  रोसरा मे उपलब्ध है !
वचन बंसी परंपरा से जुड़े संत-महंत और विद्वान लोगों का मानना है कि सदगुरु कबीर साहब ने आदि आचार्य कृष्णा कारख साहब जी को आज्ञा दिया था कि  मिथला राज्य में अपने चार मुख्य मठ स्थापित करो!
सदगुरु कबीर ने कहा की इसकी स्थापना आपके साथ जो बैल है उसके परिभ्रमण के बीच आसन धरने  के अनुसार होगा मतलब की बैल जिस गांव  के  जिस व्यक्ति के दरवाजे पर  बैठेगा वही उस क्षेत्र का धर्म स्थान होगा  और जिस व्यक्ति के दरवाजे पर बैेल बैठेगा वही व्यक्ति मठ का मुखिया होगा महंत होगा!
सद्गुरु के वचना अनुसार कृष्ण कारख साहेब अपने चार धर्म स्थान की स्थापना हेतु क्षेत्र भ्रमण के कार्यक्रम को आरंभ करते हैं और रोसरा से प्रस्थान करते हैं!
चलते चलते सबसे पहले बैल हरदिया गांव जिला समस्तीपुर में अपना पद विश्राम हेतु रखता हैं!
साहेब के साथ बैल श्री खुशीयााल साहब उर्फ खाकी साहब जी के दरवाजे पर अपना आसन ग्रहण करते हैं खुशीयाल साहब जाति से मुशहर थे जो कि एक अछूत जाति और शोषित पीड़ित वरग के रूप में गिना जाता है!
तिथि 10 अगहन 1833 इ.
सोचने बाली बात है कि  जिस जाति समाज को हिंदू धर्म के अनुसार धार्मिक विधिशास्त्र और धार्मिक शिक्षा सामाजिक कार्यों में भाग लेने कि  अनुमति नहीं है और  कोई शूद्र इसका उल्लंघन करता है तो वह पाप है अपराध है !
हिंदू धर्म के पाखंड और अंधविश्वास रूपी जातिवादी मनु स्मृति ग्रंथ की जो सिद्धांत थी उसको सीधा ठेंगा दिखाने का काम सद्गुरु कृष्ण कारख साहब ने किया !
मुशहर जाति के एक व्यक्ति को आचार्य श्री कृष्ण कारख साहब सदगुरु कबीर साहब जी के आशीर्वाद के फलस्वरूप सत्य भक्ति और सत्य पंत का बागडोर उस क्षेत्र के लिए सौंपते है !
हम कह सकते है कि यह अपने आप में अद्वितीय और क्रांतिकारी  सामाजिक परिवर्तन का उदाहरण है जो कि आज से 184 वर्ष पहले सद्गुरु कृष्ण कारक और कबीर साहब जी के द्वारा प्रतिपादित किया किया गया !
प्रथम मठ स्थापना के बाद सद्गुरु कृष्ण कारख साहब और सत्पुरुष परमात्मा अंश बैल जो उनके साथ  विचरण करता था अगले मठ स्थापना के लिए निकल पड़ते हैं ।
चलते चलते ग्राम बिशनपुर जिला दरभंगा के परम पूज्य संत मो.कादिर बख्श साहब जी की आंगन में अपने चरणों को विश्राम हेतु उपस्थित करते हैं !
परम पूज्य संत कादीर बक्स साहब उर्फ मींया  साहब जाति से शेख थे और धर्म से मुसलमान थे साहेब दिनांक 13 अगहन 1833 ई. विशनपुर मठ की स्थापना करते हैं और पूज्यनीय मीयां साहब को सत्य भक्ति प्रदान करते हुए कबीर पंथ के वचन वंश परंपरा को प्रचारित करने का दायित्व देते हैं और मठ के मठाधीश के रूप में नवाजते है।
यहां पर भी सोचने वाली बात है कि सदगुरु कबीर के सिद्धांतों के अनुरूप संप्रदाय का भेद भाव समाप्त करने हेतु धर्म में मतभेद को समाप्त करने हेतु एक मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति को कबीर पंथ का दायित्व देना और मठाधीश बनाना यह भी अपने आप में एक क्रांतिकारी सामाजिक समता, सांप्रदायिक सौहार्द और सद्भावना का प्रतीक है !
कबीर पंथ  के क्रांतिकारी संत मो.कादिर बखश उर्फ मियां साहब जी को साहिब बंदगी साहिब बंदगी !
सदगुरु कबीर साहब जी का सत्य पंथ का घोड़ा कारख साहब जी को लेकर अपने अगले मठ की स्थापना के लिए बिशनपुर ग्राम से प्रस्थान करता है !
चलते चलते निशिहारा गोरा ग्राम जिला दरभंगा पहुंचते हैं और परम पूज्य वचन वंश प्रतापी संत आचार्य देवदत्त साहब जी के दरवाजे पर अपना आसन ग्रहण करते हैं !
देवदत्त शाहब जाति से राजपूत थे और अत्यंत ऊर्जावान प्रतापी व्यक्तित्व के धनी थे आचार्य कृष्ण कारख साहब जी ने देवदत्त साहब जी को सत्य भक्ति का साक्षात्कार कराया तथा सत्य भक्ति सत्य पंथ के प्रचार प्रसार का जिम्मेवारी दिया !
इस तरह आदि आचार्य कृष्ण कारख साहब  नीशीहारा गौरा मठ की स्थापना करते हुए देवदत्त साहब को मठाधीश के रूप में नवाजते है !
यहां पर भी सोचने वाली बात है तथाकथित हिंदू धर्म जो कि मनुवादी सिद्धांत के अनुसार बना है जिसमें राजपूत का धर्म राज पाठ देखना और जनता की रक्षा करना तक सीमित है ! उसे धर्म का अधिकारी होना नहीं चाहिए ऐसा मनुस्मृति में लिखा है !
तो सदगुरु कबीर साहब जी के आशीर्वाद स्वरुप कृष्ण कारख साहब जी ने मनुवादी सिद्धांतों को तोड़ते हुए एक राजपूत को धर्माधिकारी बनाकर आधुनिक वर्ग विहीन समाज की रचना का उदाहरण दिया !
जैसा की हम  सभी जानते है कि  सदगुरु कबीर की वाणी और उनका पंथ स्वयं में एक क्रांति का प्रतीक है उसी क्रांति को आगे बढ़ाने का काम वचन वंश प्रतापी सद्गुरु कृष्ण कारख साहब जी ने किया !
वचन वंश प्रतापी आचार्य देवद्त साहब जी को  धर्माधिकारी बनाते हुए परम पूज्य श्री कृष्ण कारख साहब जी का सत्य पंथ का घोडा आगे चलता है अपने अगले मठ की स्थापना हेतु!
चलते चलते सदगुरु कबीर साहब जी का सत्य भक्ति और वचन वंश का घोड़ा नवला ग्राम जिला सहरसा में अपना पावन चरण रखता  है ! और उसी ग्राम के परम पूज्य आचार्य सनफुल साहब जी के दरवाजे पर अपना आसन ग्रहण करते हैं आचार्य सनफूल साहब जी ग्वाला यादव समाज के थे ।
सदगुरु कबीर साहब जी के आज्ञा अनुसार श्रीकृष्ण कारख साहब जी ने संत श्री सनफूल साहब जी को सत्य भक्ति का साक्षात्कार कराया और नाम पान मतलब पान चौंका दिया साथ हि सत्य भक्ति सतपंथ वचन बंश का क्षेत्रअधिकारी भी  नियुक्त किया!
इस तरह से सद्गुरु कृष्ण कारख साहब जी ने नवला धर्म स्थान की स्थापना करते हुए परम पूज्य संत सनफुल साहब जी को मठाधीश के रूप में सुशोभित किया।
नवला धर्म स्थान से अन्दामा धर्म स्थान जिला दरभंगा की स्थापना हुई है वचन वंश के इस परंपरा में गृहस्थ आश्रम गुरु मठ और गृहस्थ मठाधीश की परंपरा नवला धर्म स्थान से शुरू हुई और अभी तक चल रही है वहां भी धनी धर्मदास जी के वंशावली के जैसे ही वंशावली चलती  है।
इस तरह से सद्गुरु कृष्ण कारख साहेब जी ने सदगुरु कबीर साहब जी की आज्ञानुसार सत्य पंत और सत्य भक्ति का प्रचार प्रसार करने हेतू मिथिला प्रदेश में 4 धर्म स्थानों की स्थापना करते हैं !
पांजी पंथ प्रकाश
में सदगुरु कबीर साहब कहते हैं कि हे कृष्णा दास कारख आपकी वचन वंश परंपरा में सैकड़ों शाखाएं होंगी और उसके हजारों पर शाखाएं होंगे यदि ऱोसरा आचार्य गद्दी वचन वंश परंपरा का नियम और कानून सभी शाखाएं पर शाखाएं निभाती रहेंगी तो सभी तड जाएंगी सभी को सत्य लोक का आसन मिलेगा !
कबीरपंथ के विकास में वजन वंश परंपरा आचार्य गद्दी रोसरा का बहुत ही बड़ा योगदान है! जिसको इतिहासकार  और आधुनिक लेखकों ने दरकिनार किया है उस ओर ध्यान नहीं दिया है !
वचन वंश परंपरा कबीर पंथ का वह परंपरा है जिसमें जाति धर्म संप्रदाय का विखंडन का मूल तत्व उपलब्ध है जैसा की चार मुख्य धर्म स्थानों के मठाधीशों के समाज धर्म और जाति को देख कर पता चलता है!
सदगुरु कबीर साहब जी के मानवतावादी सिद्धांतों पर आधारित कबीर पंथ का वचन वंश परंपरा वाकई में मानव को मानव से जोड़ने का और मानव के मुख्य उद्देश्य को प्राप्त करने का एक बहुत बड़ा साधन है !
वचन वंश परंपरा में किसी भी मूर्ति चित्र का पूजा वर्जित है इस परंपरा में साक्षात सद्गुरु स्वरूप गुरु की पूजा की जाती है मतलब जिंदा गुरु  की पूजा की जाती है!
हम अपने आदि आचार्य तथा सभी संत-महंत जनों को इस महान वचन वंश परंपरा को जीवित रखने के लिए कोटि कोटि धंयवाद देते हैं।
मैं अब अंत में अपने आदि आचार्य श्री कृष्ण कारख साहब ,सत्पुरुष परमात्मा स्वरूप सदगुरु कबीर साहब जी के साथ वचन वंश परंपरा और कबीरपंथ के सभी संत महंत आचार्य गुरु जन के चरणो में साहिब बंदगी  अर्पित करता हू।
अंत में आप सभी को  साहिब बंदगी, साहिब बंदगी, साहिब बंदगी ।
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